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परमाणु ऊर्जा

इस लेख में, हम विभिन्न प्रकार की परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy), इसके पक्ष और विपक्ष, आदि के बारे में अध्ययन करने जा रहे हैं।

Table of Contents
  • परमाणु ऊर्जा क्या होती है?
  • परमाणु ऊर्जा के फायदे और नुकसान
  • परमाणु ऊर्जा के प्रकार

परमाणु ऊर्जा क्या होती है?

परमाणु ऊर्जा एक प्रकार की गैर-नवीकरणीय ऊर्जा (non- renewable energy) है, जिसमें ऊर्जा रेडियोधर्मी परमाणुओं (radioactive atoms) के नाभिक से प्राप्त होती है। यह गैर-नवीकरणीय है क्योंकि परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में प्रयुक्त रेडियोधर्मी सामग्री नवीकरणीय नहीं है - इसका पुन: उपयोग नहीं किया जा सकता है।

परमाणु ऊर्जा के फायदे और नुकसान

पिछले कुछ दशकों में परमाणु ऊर्जा को प्रमुखता मिली है। हालांकि इस ऊर्जा स्रोत में कुछ नुकसान और जोखिम शामिल हैं। इससे पहले कि हम परमाणु ऊर्जा की तकनीक जानें, आइए इसके फायदे और नुकसान दोनों पर विचार करें।

परमाणु ऊर्जा के लाभ

  • यह ऊर्जा का स्वच्छ स्रोत है। वास्तव में, यह पनबिजली (hydropower) के बाद दुनिया में कम कार्बन वाली बिजली का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है।
  • परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा का अत्यधिक कुशल स्रोत है। हम एक रेडियोधर्मी सामग्री के प्रति इकाई द्रव्यमान से बहुत अधिक ऊर्जा का उत्पादन कर सकते हैं (यह MeV के स्तर की होती है), बनिस्पत उसके जितना कि हम कोयले या पेट्रोलियम जैसी जीवाश्म सामग्री से उत्पन्न कर सकते हैं (जो कि eV के स्तर की होती है)। इसलिए, परमाणु स्रोत रासायनिक स्रोतों की तुलना में लाखों गुना अधिक ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। उदाहरण के लिए, 1 किलो कोयले को जलाने पर हमें 107 J ऊर्जा मिलती है, वहीँ 1 किलो यूरेनियम के विखंडन से 1014 J ऊर्जा पैदा होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमाणु प्रतिक्रिया, एक्ज़ोथिर्मिक रासायनिक प्रतिक्रियाओं (जो जीवाश्म ईंधन जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों में होती है) की तुलना में बहुत अधिक एक्ज़ोथिर्मिक (exothermic) है।

परमाणु ऊर्जा के नुकसान

  • हालांकि परमाणु ऊर्जा उत्पादन ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन नहीं करता है, यह प्रक्रिया पूरी तरह से साफ नहीं है। इस प्रक्रिया में बहुत सारा रेडियोधर्मी अपशिष्ट/कचरा (radioactive waste) उत्पन्न होता है, जो पर्यावरण के लिए खतरा पैदा करता है, और संयंत्र में काम करने वाले लोगों और आस-पास रहने वाले लोगों के लिए विकिरण से स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करता है। ऐसे परमाणु कचरे को जिस तरह से संग्रहीत और/या निपटाया जाता है, उसमें विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।
  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में कभी भी आपदा आ सकती है (जैसे meltdown disasters)। ऐसी आपदा पूरे शहर को दशकों तक निर्जन बना सकती है। पूर्व सोवियत संघ में चेरनोबिल परमाणु संयंत्र (Chernobyl nuclear plant) में यही हुआ था।
नोट

परमाणु विकिरण के संपर्क में आने से जानवरों, पौधों और यहां तक कि सामग्री (जैसे भवन) पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। विकिरण के स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभावों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:

  • दैहिक प्रभाव (Somatic effects): इनसे कैंसर जैसी घातक बीमारी की संभावना बढ़ जाती है। कहने की जरूरत नहीं है कि ये लोगों के जीवनकाल को कम करती है।

  • आनुवंशिक प्रभाव (Genetic effects): विकिरण के संपर्क में आने से आनुवंशिक परिवर्तन भी हो सकते हैं, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। ऐसे अधिकांश जीन संशोधन बदतर ही होते हैं। अब क्यूंकि जीन अगली पीढ़ियों को हस्तांतरित होते हैं, विकिरण जोखिम/अनावरण (radiation exposure) कई पीढ़ियों को प्रभावित करता है।

परमाणु ऊर्जा के प्रकार

नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission)

जब एक भारी नाभिक दो या दो से अधिक हल्के नाभिक और कुछ मूल कणों में विभाजित हो जाता है, तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय विखंडन कहा जाता है।

भारी नाभिक आमतौर पर एक रेडियोधर्मी होता है, और वैज्ञानिक इसे विभाजित करने के लिए धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन (slow-moving neutrons) का उपयोग करते हैं। यानी धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन वे कण हैं जो परमाणु विखंडन प्रतिक्रिया शुरू करते हैं।

अब, यदि परमाणु विखंडन की प्रक्रिया स्वयं उत्पाद के रूप में ऐसे धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन का उत्पादन करती है, तो वे अन्य भारी नाभिकों में परमाणु विखंडन प्रतिक्रिया शुरू कर देंगे, जो बदले में अधिक धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन का उत्पादन करेगी, और इसी तरह आगे भी होता रहेगा। तो, विखंडन प्रतिक्रिया की एक श्रृंखला शुरू होगी, जिसे नाभिकीय श्रृंखला अभिक्रिया (Nuclear Chain Reaction) कहा जाता है।

उदाहरण के लिए, जब इन धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन का उपयोग यूरेनियम नाभिक (\(U^{235}_{92}\)) को विभाजित करने के लिए किया जाता है, तो हमें निम्नलिखित प्रतिक्रिया देखने को मिलती है:

\(U^{235}_{92}\) + \(n^{1}_{0}\) → \({Ba}^{141}_{56}\) + \({Kr}^{92}_{36}\) + 3 \(n^{1}_{0}\) + ऊर्जा

जैसा कि आप देख सकते हैं, यूरेनियम नाभिक तीन न्यूट्रॉन के साथ \({Ba}^{141}_{56}\) और \({Kr}^{92}_{36}\) में विभाजित हो गया है। बहुत सारी ऊर्जा भी उत्पन्न हुई है।

खंड उत्पाद \({Ba}^{141}_{56}\) और \({Kr}^{92}_{36}\) स्वयं रेडियोधर्मी नाभिक हैं। यानी वे स्थिर नहीं हैं - वे क्रमिक रूप से β कणों का उत्सर्जन करते हैं जब तक कि स्थिर अंत उत्पादों का उत्पादन नहीं हो जाता है।

उत्पादित धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन पास के नाभिक में नाभिकीय विखंडन प्रतिक्रिया शुरू करते हैं। इस प्रकार, एक नाभिकीय श्रृंखला अभिक्रिया शुरू होती है।

अब, यह नाभिकीय विखंडन श्रृंखला अभिक्रिया नियंत्रित या अनियंत्रित हो सकती है।

नियंत्रित और अनियंत्रित नाभिकीय विखंडन श्रृंखला अभिक्रियाएं

विखंडन नाभिकीय श्रृंखला अभिक्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं: नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रियाएँ और अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रियाएँ।

  • अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रियाएं (Uncontrolled chain reactions): यदि नाभिकीय श्रृंखला अभिक्रिया को नियंत्रित नहीं किया जाता है, अर्थात धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉनों को पास के नाभिकों को विभाजित करने से नहीं रोका जाता है (अर्थात अवशोषित नहीं किया जाता है), तो बहुत कम समय में बहुत सारी ऊर्जा निकलती है। परमाणु बम (Atom bombs) इसी सिद्धांत पर आधारित होते हैं।

  • नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रियाएं (Controlled chain reactions): यदि परमाणु श्रृंखला अभिक्रिया को नियंत्रित किया जाता है, अर्थात कुछ धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन को पास के नाभिक को विभाजित करने से रोक दिया जाता है (अर्थात अवशोषित कर लिया जाता है), तो ऊर्जा बहुत नियंत्रित तरीके से निकलती है। बिजली पैदा करने वाले विखंडनीय नाभिकीय/परमाणु रिएक्टर/भट्ठियाँ (Fission nuclear reactors) इसी सिद्धांत पर आधारित हैं। Fission nuclear reactors

नोट

ध्यान दें कि इस तरह की अभिक्रियाएं तेज और धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन दोनों का उत्पादन करती हैं। तेजी से चलने वाले इलेक्ट्रॉनों की विखंडन अभिक्रिया पैदा करने की तुलना में, सिस्टम से बच निकलने की अधिक संभावना होती है। इसलिए, भले ही कोई न्यूट्रॉन अवशोषित न हो, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि एक श्रृंखला अभिक्रिया होगी ही। केवल श्रृंखला अभिक्रिया की संभावना भर रहती है - यह सबसे पहले एनरिको फर्मी (Enrico Fermi) ने सुझाया था।

नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion)

जब दो हल्के नाभिक मिलकर एक भारी नाभिक बनाते हैं, तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है।

दो नाभिकों को एक साथ संयोजित या फ्यूज करने के लिए, उन्हें निम्न की आवश्यकता होती है:

  • उनके धनावेशित कणों के बीच कूलम्ब प्रतिकर्षण (coulomb repulsion) पर काबू पाने की (क्योंकि दोनों नाभिकों में धनावेशित प्रोटॉन होते हैं)। इस कूलम्ब बाधा को दूर करने के लिए, उनके पास पर्याप्त ऊर्जा होनी चाहिए। कूलम्ब बाधा (coulomb barrier) की ताकत दो परस्पर क्रिया करने वाले नाभिकों के आवेशों और त्रिज्याओं पर निर्भर करती है।
  • उन्हें काफी करीब आना होता है ताकि कम दूरी पर काम करने वाला आकर्षक मजबूत परमाणु बल (strong nuclear force) उन्हें प्रभावित कर सके।

इस उद्देश्य के लिए, हमें बहुत अधिक तापमान (लगभग 107 K) और उच्च दबाव (लगभग 106 वायुमंडल) की आवश्यकता होती है, जिस पर कणों को कूलम्ब प्रतिकारक/प्रतिकर्षण व्यवहार को दूर करने के लिए पर्याप्त गतिज ऊर्जा प्राप्त होती है।

चूंकि इस प्रक्रिया में संलयन बहुत उच्च तापमान पर होता है, इसलिए हम इस प्रक्रिया को थर्मोन्यूक्लियर फ्यूजन (thermonuclear fusion) कहते हैं। इतने उच्च तापमान पर, हमें पदार्थ की चौथी अवस्था मिलती है - प्लाज्मा (plasma), जो धनात्मक आयनों और इलेक्ट्रॉनों का मिश्रण होता है।

सितारों (हमारे सूर्य सहित) के अंदर यही होता है। यानी थर्मोन्यूक्लियर फ्यूजन हमारे सूर्य की ऊर्जा का स्रोत है। और तारे लगभग पूरी तरह से प्लाज्मा से बने होते हैं। इसलिए हमारे ब्रह्मांड में अधिकांश पदार्थ गैसीय, तरल या ठोस अवस्था के बजाय प्लाज्मा अवस्था में पाया जाता है।

हमारे सूर्य में होने वाली एक विशिष्ट परमाणु संलयन प्रतिक्रिया का समीकरण नीचे दर्शाया गया है:

\(H^{2}_{1}\) + \(H^{3}_{1}\) → \({He}^{4}_{2}\) + \(n^{1}_{0}\) + ऊर्जा (17.6 MeV)

लेकिन सूर्य (या किसी अन्य तारे) में संलयन प्रतिक्रिया इतनी सरल नहीं होती है। यह एक बहु-चरणीय प्रक्रिया है।

  • पहले चरण में, हाइड्रोजन को जलाकर हीलियम बनाया जाता है (जैसा कि ऊपर दिए गए समीकरण द्वारा दर्शाया गया है)। तारे के प्रारंभिक जीवन में ऐसा ही होता है।

  • जैसे-जैसे तारे के केंद्र (core) में हाइड्रोजन कम होता जाता है, अधिक से अधिक हीलियम का उत्पादन होता है, और उसका केंद्र ठंडा होने लगता है। इसकी वजह से यह अपने गुरुत्वाकर्षण के बल के तहत थोड़ा सा ढहने लगता है। इसकी वजह से केंद्र का तापमान बढ़ता है। यदि तापमान लगभग 108 K तक बढ़ जाता है, तो एक अन्य प्रकार का संलयन होता है - अब हीलियम के नाभिक जलकर कार्बन बनने लगते हैं।

  • यह नाभिकीय संलयन की अभिक्रिया दोहराती रहती है और इसके द्वारा और भी उच्च द्रव्यमान संख्या (mass number) वाले तत्वों का निर्माण होता रहता है। लेकिन केंद्र में पर्याप्त लोहा बनने के बाद यह प्रक्रिया रुक जाती है। क्यूंकि लोहे को दबाया नहीं जा सकता, कोई भी तारा लोहे से भारी तत्व का उत्पादन नहीं कर सकता।

लोहा - तारे का जहर!

लोहे को अक्सर तारे का जहर कहा जाता है - क्योंकि किसी तारे में लोहे के उत्पादन से उसकी मृत्यु हो जाती है। सभी तत्व जो लोहे से भारी होते हैं, जैसे सोना, चांदी, यूरेनियम आदि, किसी तारे के मरने पर, यानी सुपरनोवा (supernova) विस्फोट में बनते हैं। वे एक जीवित तारे के अंदर नहीं बन सकते। इसलिए वे प्रकृति में दुर्लभ हैं।

हालांकि, ध्यान दें कि सभी सितारे सुपरनोवा बनकर नहीं मरते हैं। किसी तारे की मृत्यु कैसे होगी यह उसके आकार पर निर्भर करता है। यह सुपरनोवा बनकर फट सकता है, ब्लैक होल, रेड जाइंट, न्यूट्रॉन स्टार, आदि बन सकता है।

हमारे सूर्य का जीवन और मृत्यु

जब हमारा सूर्य अपनी मृत्यु के निकट जायेगा, अर्थात एक बार उसने अपना सारा हाइड्रोजन जला दिया तो:

  • इसका केंद्र/कोर ठंडा होना शुरू हो जाएगा, और इसलिए यह गुरुत्वाकर्षण के तहत ढहना शुरू हो जाएगा। यह सूर्य के केंद्र के तापमान को बढ़ाएगा और अब हीलियम जलकर उच्च तत्वों में बदलने लगेगा।

  • इसकी बाहरी परतों का विस्तार होगा, यानी सूर्य एक लाल दानव (रेड जाइंट, red giant) में परिवर्तित हो जाएगा। सूर्य की वर्तमान आयु लगभग 5 × 109 वर्ष है। एक अनुमान के अनुसार इसके केंद्र में हाइड्रोजन ईंधन इतना है कि यह अगले 5 अरब वर्षों तक चलेगा।

नियंत्रित और अनियंत्रित नाभिकीय संलयन श्रृंखला अभिक्रियाएं

नाभिकीय विखंडन अभिक्रियाओं की तरह, नाभिकीय संलयन अभिक्रियाएं भी दो प्रकार की होती हैं: नियंत्रित और अनियंत्रित।

  • अनियंत्रित थर्मोन्यूक्लियर फ्यूजन (Uncontrolled thermonuclear fusion): विखंडन अभिक्रिया के विपरीत, संलयन ऊर्जा उत्पादन किसी श्रृंखला अभिक्रिया पर आधारित नहीं होता है। तो, इसे नियंत्रित करना आसान है। उच्च तापमान और दबाव बनाए रखने तक ही संलयन जारी रहेगा। हाइड्रोजन बम, जो विखंडन आधारित परमाणु बमों से हजारों गुना अधिक शक्तिशाली होते हैं, इसी सिद्धांत पर आधारित होते हैं। हाइड्रोजन बम में संलयन प्रक्रिया शुरू करने के लिए, परमाणु/विखंडन बम का उपयोग किया जाता है, जो एक प्राइमर (primer) के रूप में कार्य करता है और संलयन प्रक्रिया के लिए आवश्यक अत्यधिक उच्च तापमान और दबाव उत्पन्न करता है।

  • नियंत्रित थर्मोन्यूक्लियर फ्यूजन (Controlled thermonuclear fusion): चूंकि संलयन अभिक्रिया (fusion reaction), श्रृंखला अभिक्रिया पर आधारित नहीं होती है, यह स्वाभाविक रूप से विखंडन अभिक्रिया की तुलना में बहुत अधिक नियंत्रित होती है। संलयन परमाणु रिएक्टर/भट्टी (फ्यूजन न्यूक्लियर रिएक्टर / Fusion nuclear reactors या थर्मोन्यूक्लियर फ्यूजन डिवाइस / Thermonuclear fusion devices) इसी सिद्धांत पर आधारित हैं। यद्यपि यह तकनीक अभी भी विकसित की जा रही है - वर्तमान संलयन परमाणु रिएक्टर (fusion nuclear reactors) अभी भी प्रोटोटाइप की प्रकृति के ही हैं।

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