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नाभिकीय रिएक्टर्स

इस लेख में हम विभिन्न प्रकार के परमाणु रिएक्टरों के बारे में अध्ययन करने जा रहे हैं। हम मुख्य रूप से विखंडन नाभकीय रिएक्टरों (fission nuclear reactors) पर ध्यान केंद्रित करेंगे, क्योंकि वे सक्रिय रूप से ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयोग किए जा रहे हैं। हालांकि हम संलयन नाभकीय रिएक्टरों (fusion nuclear reactors) पर भी कुछ ध्यान अवश्य देंगे जो अभी भी अनुसंधान और विकास के चरण में हैं।

Table of Contents
  • विखंडन नाभकीय रिएक्टर या परमाणु रिएक्टर
  • फ्यूजन न्यूक्लियर रिएक्टर या थर्मोन्यूक्लियर फ्यूजन डिवाइस
  • भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम

विखंडन नाभकीय रिएक्टर या परमाणु रिएक्टर

विखंडन नाभकीय रिएक्टर, बिजली उत्पन्न करने के लिए परमाणु विखंडन (nuclear fission) और नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया (controlled chain reaction) की अवधारणाओं का उपयोग करते हैं।

विखंडन नाभकीय रिएक्टर के हिस्से

किसी भी विखंडन नाभकीय रिएक्टर में, आपको निम्नलिखित घटक मिलेंगे।

Fission nuclear reactors

ईंधन

बेशक, एक परमाणु रिएक्टर को विखंडन प्रक्रिया शुरू करने के लिए विखंडनीय रेडियोधर्मी ईंधन (fissionable radioactive fuel) की आवश्यकता होगी। इसे रिएक्टर के केंद्र में रखा जाता है।

सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला परमाणु रिएक्टर ईंधन है:

* समृद्ध यूरेनियम (Enriched Uranium): इसमें प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले \({U}^{238}_{92}\) यूरेनियम समस्थानिक (आइसोटोप, isotope) की तुलना में \({U}^{235}_{92}\) समस्थानिक की मात्रा अधिक होती है। \({U}^{238}_{92}\) समस्थानिक गैर विखंडनीय है।

* प्लूटोनियम (Plutonium), \({Pu}^{239}_{94}\)

नोट

थोरियम (Thorium) को विभिन्न कारणों से परमाणु ऊर्जा का भविष्य का ईंधन माना जाता है, जैसे:

  • प्रकृति में थोरियम का भंडार यूरेनियम की तुलना में चार गुना अधिक प्रचुर मात्रा में है।

  • थोरियम, यूरेनियम की तुलना में प्रति इकाई द्रव्यमान आठ गुना अधिक ऊर्जा का उत्पादन कर सकता है।

  • थोरियम, यूरेनियम की तुलना में कम हानिकारक परमाणु अपशिष्ट/कचरा पैदा करता है।

अब, हम जानते हैं कि परमाणु रिएक्टर में ऊर्जा कैसे उत्पन्न होती है। लेकिन इसका इस्तेमाल करने के लिए हमें इसे नियंत्रित करने की जरूरत है, यानी हमें नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया की जरूरत है। इसके लिए हम रिएक्टर में मंदक (मॉडरेटर) और नियंत्रक छड़ों (कंट्रोल रॉड) का इस्तेमाल करते हैं।

नियंत्रक छड़ें (Control Rods)

एक विखंडन अभिक्रिया न केवल 1 न्यूट्रॉन, बल्कि लगभग 2 से 3 न्यूट्रॉन निकालती है। उदाहरण के लिए, यूरेनियम नाभिक के विखंडन से औसतन 2.5 न्यूट्रॉन निकलते हैं - कुछ विखंडन घटनाओं में 2 न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं, कुछ में 3, आदि।

निकाले गए ये अतिरिक्त न्यूट्रॉन अन्य रेडियोधर्मी नाभिकों में और विखंडन अभिक्रियाएं शुरू कर सकते हैं। यह बदले में और भी अधिक न्यूट्रॉन का उत्पादन करेंगी। यह सब जल्द ही अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया को शुरू कर सकता है, जो परमाणु बम की तरह ही विस्फोटक ऊर्जा उत्पादन कर सकता है। 1986 में यूक्रेन में चेरनोबिल (Chernobyl) रिएक्टर में यही हुआ था। रिएक्टर के कोर में श्रृंखला अभिक्रिया (चेन रिएक्शन) हाथ से निकल गयी और एक विस्फोट के साथ पूरा केंद्र/कोर पिघल गया।

हालांकि, अगर इन निकाले गए न्यूट्रॉन को उपयुक्त रूप से नियंत्रित किया जाता है, तो हम एक स्थिर ऊर्जा स्रोत प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए हम नियंत्रक छड़ों (कंट्रोल रॉड्स) का इस्तेमाल करते हैं। नियंत्रण छड़ों का उपयोग अतिरिक्त न्यूट्रॉन को अवशोषित करने के लिए किया जाता है और इस प्रकार यह विखंडन श्रृंखला अभिक्रिया की दर को नियंत्रित करती हैं।

ये नियंत्रण छड़ें कैडमियम (cadmium) या बोरॉन (boron) जैसे अच्छे न्यूट्रॉन-अवशोषण पदार्थों (neutron-absorbing materials) से बनी होती हैं।

नोट

नियंत्रण छड़ के अलावा, परमाणु रिएक्टर सुरक्षा छड़ (safety rods) से भी लैस होते हैं। श्रृंखला अभिक्रिया (चेन रिएक्शन) को जल्दी से रोकने के लिए इन सुरक्षा छड़ों को रिएक्टर में डाला जा सकता है (उदाहरण के लिए आपात स्थिति के मामले में)।

मंदक (Moderators)

विखंडन श्रृंखला अभिक्रिया को नियंत्रित करना एक संतुलनकारी कार्य है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि हम बहुत अधिक न्यूट्रॉन को बहुत अधिक विखंडन अभिक्रियाएँ शुरू करने देते हैं, तो रिएक्टर का कोर/केंद्र बहुत गर्म होकर फट सकता है। दूसरी तरफ, अगर न्यूट्रॉन बहुत कम हैं, तो श्रृंखला अभिक्रिया बंद हो सकती है।

परमाणु विखंडन अभिक्रिया दो प्रकार के न्यूट्रॉन उत्पन्न करती है: धीमे न्यूट्रॉन (slow neutrons, thermal neutrons/थर्मल न्यूट्रॉन) और तेज न्यूट्रॉन (fast neutrons).

प्रयोगात्मक रूप से यह पाया गया है कि:

* तेज न्यूट्रॉन की तुलना में धीमे न्यूट्रॉन \({U}^{235}_{92}\) में विखंडन का कारण बनने की अधिक संभावना रखते हैं।

* दूसरे नाभिक को विभाजित करने की तुलना में, तेज न्यूट्रॉन सिस्टम/प्रणाली से बच निकलने की अधिक संभावना रखते हैं। इस तरह के न्यूट्रॉन एक श्रृंखला अभिक्रिया को तभी बनाए रख सकते हैं जब बहुत बड़ी मात्रा में विखंडनीय सामग्री का उपयोग किया जाये।

इसलिए, हमें प्रणाली में पर्याप्त संख्या में धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन की आवश्यकता होती है ताकि विखंडन श्रृंखला अभिक्रिया को जारी रखा जा सके और सीमित मात्रा में विखंडनीय सामग्री को लेकर भी लगातार ऊर्जा का उत्पादन किया जा सके। इस उद्देश्य के लिए, हम मंदक/मॉडरेटर का उपयोग करते हैं।

जैसा कि नाम से पता चलता है, मंदक तेजी से चलने वाले न्यूट्रॉन को धीमा कर देते हैं। यह मंदक के हल्के नाभिक (light nuclei) के साथ ऐसे न्यूट्रॉन के लोचदार प्रकीर्णन (elastic scattering) द्वारा होता है। परमाणु संयंत्रों में सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले मंदक पानी, भारी पानी (D2O), बेरिलियम ऑक्साइड (beryllium oxide) और ग्रेफाइट हैं।

तो, सिस्टम/प्रणाली में अत्यधिक न्यूट्रॉन को अवशोषित करने के लिए नियंत्रण छड़ों का उपयोग किया जाता है, और इस तरह इसे अनियंत्रित होने से रोका जाता है। जबकि, मंदक का उपयोग तेजी से चलने वाले न्यूट्रॉन को धीमा करने के लिए किया जाता है और इस प्रकार सिस्टम में धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन की संख्या में वृद्धि होती है, और इस तरह रिएक्टर को स्वतः रुकने से रोका जाता है।

नोट
  • जब कोई परमाणु रिएक्टर ग्रेफाइट को मंदक के रूप में उपयोग करता है, तो हम ऐसे रिएक्टर को atomic pile कहते हैं।

  • जब कोई परमाणु रिएक्टर भारी पानी (heavy water, D2O) को मंदक के रूप में उपयोग करता है, तो हम ऐसे रिएक्टर को swimming pool reactor (स्विमिंग पूल रिएक्टर) कहते हैं।

भारतीय परमाणु रिएक्टरों में प्रयुक्त मंदक
  • मंदक के रूप में पानी - भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Centre, BARC), मुंबई में अप्सरा रिएक्टर (Apsara reactor) में उपयोग किया जाता है।

  • मंदक के रूप में भारी पानी - अन्य भारतीय रिएक्टरों में उपयोग किया जाता है जो बिजली उत्पादन के लिए उपयोग किए जाते हैं।

तो अब हम जानते हैं कि परमाणु रिएक्टर में ऊर्जा कैसे उत्पन्न और नियंत्रित होती है। लेकिन इस ऊर्जा को बिजली उत्पन्न करने के लिए कैसे उपयोग किया जाता है? - इसके लिए हम शीतलक (कूलेंट, Coolant) और पानी का इस्तेमाल करते हैं।

शीतलक और पानी (Coolant and Water)

परमाणु विखंडन अभिक्रिया लगातार बहुत अधिक गर्मी पैदा करती है। अतः इस गर्मी को लगातार हटाने की जरूरत होती है:

  • कोर/केंद्र का तापमान स्थिर रखने के लिए।
  • इस गर्मी का उपयोग बिजली के उत्पादन में करने के लिए।

यह एक उपयुक्त शीतलक का उपयोग करके किया जाता है। शीतलक परमाणु ऊर्जा संयंत्र के मूल/कोर/केंद्र से गर्मी को हटाता रहता है और इसे एक द्रव में स्थानांतरित करता है, जो बदले में भाप (steam) उत्पन्न करता है। इस भाप का उपयोग टर्बाइन चलाने और बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

उपयोग किया जाने वाला शीतलक ठंडा पानी, तरल ऑक्सीजन, आदि हो सकता है। यदि केंद्र का तापमान बहुत अधिक है, तो इंजीनियर शीतलक के रूप में पिघली हुई धातु का भी उपयोग करते हैं।

विखंडन नाभिकीय रिएक्टरों के प्रकार

थर्मल रिएक्टर (Thermal reactors)

थर्मल रिएक्टरों में, हम धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन द्वारा \({U}^{235}_{92}\) के विखंडन से उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग करके बिजली उत्पन्न करते हैं।

ब्रीडर रिएक्टर (Breeder reactors)

ब्रीडर रिएक्टरों में, हम धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन द्वारा \({Pu}^{239}\) या \({U}^{233}\) के विखंडन से उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग करके बिजली उत्पन्न करते हैं।

ब्रीडर रिएक्टरों की मुख्य विशेषता यह है कि वे जितना उपभोग करते हैं उससे अधिक विखंडनीय सामग्री का उत्पादन करते हैं। इसलिए उनका नाम ब्रीडर रिएक्टर है - वे नयी सामग्री पैदा करते हैं!

* \({Th}^{232}_{90}\) (थोरियम), \({U}^{233}\) (यूरेनियम) का उत्पादन करता है। \({Th}^{232}_{90}\) विखंडनीय नहीं है, लेकिन \({U}^{233}\) एक बहुत अच्छा परमाणु ईंधन है।

* U238 (यूरेनियम), \({Pu}^{239}\) (प्लूटोनियम) का उत्पादन करता है। \({Pu}^{239}\) एक बहुत ही उपयोगी परमाणु ईंधन है।

एक ब्रीडर रिएक्टर का कोर/केंद्र थर्मल रिएक्टर की तुलना में बहुत अधिक गर्म होता है। कोर में तापमान लगभग 9000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। इसलिए, ऐसे रिएक्टरों में हम अक्सर पिघली हुई धातुओं को शीतलक के रूप में प्रयोग करते हैं।

फ्यूजन न्यूक्लियर रिएक्टर या थर्मोन्यूक्लियर फ्यूजन डिवाइस

फ्यूजन परमाणु रिएक्टर (Fusion nuclear reactors) या थर्मोन्यूक्लियर फ्यूजन डिवाइस (Thermonuclear fusion devices) परमाणु संलयन के सिद्धांत पर आधारित हैं। यद्यपि यह तकनीक अभी भी विकसित की जा रही है - वर्तमान संलयन परमाणु रिएक्टर अभी भी प्रोटोटाइप की प्रकृति के हैं।

Fusion nuclear reactors

ऐसे रिएक्टर किसी तारे में हो रही प्राकृतिक थर्मोन्यूक्लियर फ्यूजन प्रक्रिया को धरती पर दोहराने की कोशिश करते हैं। यदि हम इस तकनीक पर सफलतापूर्वक काबू पा लेते हैं, तो मानवता को असीमित ऊर्जा प्राप्त हो जाएगी।

आइए, अब उन कुछ चुनौतियों पर एक नजर डालते हैं जिनका वैज्ञानिकों को इस तकनीक को विकसित करने में सामना करना पड़ रहा है।

परमाणु संलयन प्रौद्योगिकी के विकास के समक्ष चुनौतियां

थर्मोन्यूक्लियर फ्यूजन डिवाइस (thermonuclear fusion device) का उद्देश्य परमाणु ईंधन को लगभग 108 K के तापमान पर गर्म करके एक स्थिर शक्ति स्रोत बनाना है। ऐसे उच्च तापमान पर, हमें पदार्थ की चौथी अवस्था मिलती है - प्लाज्मा (plasma), जो धनात्मक आयनों और इलेक्ट्रॉन का मिश्रण है।

जैसा कि आप कल्पना कर सकते हैं, दुनिया में कोई भी पात्र इतने उच्च तापमान को संभाल नहीं सकता है। इसलिए, सबसे पहली और बुनियादी चुनौती इस प्लाज्मा को सँभालने की है।

इस प्लाज्मा को सँभालने के लिए, वैज्ञानिक टोकामक (tokamak) नामक एक टोरस-आकार की मशीन (torus-shaped machine) का उपयोग कर रहे हैं, और साथ ही एक बहुत बड़े परिमाण के प्रत्यावर्ती चुंबकीय क्षेत्र / alternating magnetic field (मेगा एम्पीयर करंट द्वारा उत्पन्न) का उपयोग कर रहे हैं। चुंबकीय क्षेत्र टोकामक के किनारों से विद्युत आवेशित प्लाज्मा को पीछे हटाता है, और इसे पात्र के केंद्र तक ही सीमित रखता है। चूंकि प्लाज्मा पात्र को नहीं छूता है, यह इसे पिघला नहीं सकता है।

नोट

टोकामक (tokamak) नामक टोरस के आकार की मशीन को सबसे पहले तत्कालीन USSR, यानी सोवियत संघ द्वारा विकसित किया गया था।

भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम

भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य हैं:

  • सुरक्षित और विश्वसनीय तरीके से बिजली का उत्पादन करना, ताकि देश का सामाजिक-आर्थिक विकास किया जा सके।
  • परमाणु प्रौद्योगिकी के सभी पहलुओं में आत्मनिर्भर बनना।

भारत में परमाणु खनिजों की खोज 1950 के दशक की शुरुआत में शुरू हुई थी। यह जल्द ही स्पष्ट हो गया कि यद्यपि हमारे देश में यूरेनियम (uranium) का सीमित भंडार है, पर हमारे पास थोरियम (thorium) का प्रचुर भंडार है। इसे ध्यान में रखते हुए, भारतीय परमाणु वैज्ञानिकों ने परमाणु ऊर्जा उत्पादन की तीन चरण की रणनीति तैयार की है और उसे अपनाया है।

भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का प्रथम चरण

इस चरण में, हमने प्राकृतिक यूरेनियम को ईंधन के रूप में, और भारी पानी को मंदक के रूप में इस्तेमाल किया।

भारत अब पहले चरण से संबंधित लगभग सभी जटिल तकनीकों के मामले में लगभग आत्मनिर्भर है। उदाहरण के लिए:

  • अब भारत भारी जल उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया है।
  • भारतीय परमाणु वैज्ञानिकों को अब यूरेनियम के खनिज अन्वेषण और खनन (exploration and mining) के साथ-साथ ईंधन संवर्धन (enrichment) और पुनर्संसाधन (reprocessing) की प्रक्रिया में महारत हासिल है।
  • हमने परमाणु रिएक्टरों का सावधानीपूर्वक डिजाइन और निर्माण करना और उन्हें संचालित करना सीख लिया है।

देश के विभिन्न शहरों में निर्मित प्रेशराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर (Pressurised Heavy Water Reactors, PHWRs) कार्यक्रम के पहले चरण की उपलब्धि को चिह्नित करते हैं।

भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का द्वितीय चरण

इस दूसरे चरण में हम फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों (fast breeder reactors) का उपयोग करते हैं।

पहले चरण के रिएक्टरों से निकलने वाले ईंधन को \({Pu}^{239}\) (प्लूटोनियम -239) प्राप्त करने के लिए पुन: संसाधित (reprocessed) किया जाता है। यह फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों के लिए ईंधन के रूप में कार्य करता है। ये रिएक्टर न केवल बिजली उत्पन्न करते हैं, बल्कि उपभोग की तुलना में अधिक विखंडनीय प्रजातियों (प्लूटोनियम) का उत्पादन भी करते हैं।

उन्हें “फास्ट/तेज” कहा जाता है, क्योंकि इन रिएक्टरों में श्रृंखला अभिक्रिया को बनाए रखने के लिए तेजी से चलने वाले न्यूट्रॉन का उपयोग किया जाता है।

नोट

चूंकि फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों को धीमी गति से चलने वाले न्यूट्रॉन की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए हमें उनमें मंदक/मॉडरेटर का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है।

भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का तृतीय चरण

इस चरण में, वैज्ञानिकों का लक्ष्य थोरियम-232 से विखंडनीय यूरेनियम-233 का उत्पादन करने के लिए फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों का उपयोग करना, और उनके आधार पर बिजली रिएक्टरों का निर्माण करना है। अर्थात् यह चरण थोरियम के उपयोग पर आधारित है।

चूंकि भारत में थोरियम की प्रचुरता है, इसलिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण से यह तीसरा चरण हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है। हालांकि भारत अभी भी दूसरे चरण में फंसा हुआ है, लेकिन तीसरे चरण पर भी काफी शोध कार्य किया जा रहा है।

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