ध्वनि तरंगें (Sound Waves)
ध्वनि तरंगें, अनुदैर्ध्य यांत्रिक तरंगें (longitudinal mechanical waves) हैं। जब वे हमारे श्रवण यंत्र से टकराते हैं, तो वे हमारे अंदर सुनने की अनुभूति पैदा करते हैं। सामान्यतः ध्वनि तरंगों की आवृत्ति (frequency) कम और तरंगदैर्ध्य (wavelength) अधिक होती है।
ध्वनि तरंगें निर्वात में नहीं चल सकतीं। इन्हें एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक यात्रा करने के लिए एक माध्यम की आवश्यकता होती है। इसीलिए हम अंतरिक्ष में ध्वनि नहीं सुन सकते, क्योंकि वहां हवा नहीं होती है।
- ध्वनि की गति (Speed of Sound)
- ध्वनि तरंगों के प्रकार (Types of Sound Waves)
- ध्वनि तरंग (संगीत ध्वनि) के गुण
ध्वनि की गति (Speed of Sound)
ध्वनि की गति कई कारकों पर निर्भर करती है। आइए उन्हें सूचीबद्ध करें।
- माध्यम की प्रत्यास्थता (Elasticity of medium)
किसी माध्यम की प्रत्यास्थता जितनी अधिक होगी, उसमें ध्वनि की गति उतनी ही अधिक होगी। गैसों, तरल पदार्थों और ठोस पदार्थों की प्रत्यास्थता का बढ़ता क्रम निम्नलिखित है:
गैसें < तरल पदार्थ < ठोस
चूँकि ठोस सबसे अधिक लोचदार होते हैं, ध्वनि की गति ठोस में सबसे अधिक होती है। यह गैसों में न्यूनतम होती है।
यदि Vs, Vl और Vg ठोस, तरल और गैसों में ध्वनि तरंगों की गति हैं, तो:
Vs > Vl > Vg.
जब ध्वनि एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती है तो उसकी आवृत्ति अपरिवर्तित रहती है। केवल इसकी गति और तरंग दैर्ध्य बदलती हैं।
- माध्यम का घनत्व (Density of medium)
किसी माध्यम का घनत्व जितना कम होगा, ध्वनि की गति उतनी ही अधिक होगी।
उदाहरण के लिए, आर्द्र हवा का घनत्व शुष्क हवा के घनत्व से कम होता है। इसीलिए ध्वनि की गति शुष्क हवा की तुलना में आर्द्र हवा में अधिक होती है। आपने देखा होगा कि गर्मी के मौसम की तुलना में बरसात के मौसम में हमें ट्रेन का सायरन काफी दूर तक सुनाई देता है।
ध्वनि तरंगों की गति गैसों की तुलना में ठोस और तरल पदार्थों में अधिक होती है। चूंकि ठोस और तरल पदार्थ गैसों की तुलना में सघन होते हैं, इसलिए कोई यह मान सकता है कि तरंग का ऐसे माध्यमों में चलना कठिन होगा। लेकिन ठोस और तरल पदार्थों को संपीड़ित (compress) करना भी अधिक कठिन होता है, यानी उनमें थोक मापांक (bulk modulus) का मान अधिक होता है। यह गैसों की तुलना में उनके उच्च घनत्व की भरपाई कर देता है।
यद्यपि ध्वनि की गति माध्यम के घनत्व पर निर्भर होती है, पर यह दबाव से स्वतंत्र होती है, अर्थात दबाव के बढ़ने या घटने से ध्वनि की गति अपरिवर्तित रहती है।
- तापमान (Temperature)
किसी माध्यम का तापमान जितना अधिक होगा, ध्वनि की गति उतनी ही अधिक होगी। तापमान में प्रत्येक 1°C वृद्धि के साथ, हवा में ध्वनि की गति 0.61 m/s बढ़ जाती है।
तापमान के साथ ध्वनि तरंग की गति का संबंध निम्नलिखित सूत्र द्वारा दर्शाया जा सकता है:
v = k√T, जहां, v = ध्वनि की गति, T = तापमान।
- माध्यम की गति का प्रभाव (Effect of the speed of the medium)
यदि किसी माध्यम की गति तेज़ कर दी जाए तो:
- ध्वनि की गति उसी दिशा में बढ़ती है, तथा
- ध्वनि की गति विपरीत दिशा में कम हो जाती है।
ध्वनि की गति, प्रकाश की गति की तुलना में काफी धीमी होती है। इसीलिए हम प्रकाश की चमक देखने के थोड़ी देर बाद ही बादल की गड़गड़ाहट सुनते हैं।
प्रघाती तरंगें (Shock Waves)
जब किसी पिंड की गति हवा में ध्वनि की गति से अधिक हो जाती है तो इसे पराध्वनिक गति (सुपरसोनिक गति) कहा जाता है। आधुनिक युग के कई जेट विमान इस गति से चलते हैं।
ऐसा तेज़ गति से चलने वाला पिंड अपने पीछे विक्षोभ का एक शंक्वाकार क्षेत्र छोड़ जाता है जो लगातार फैलता रहता है। ऐसे विक्षोभ (disturbance) को प्रघाती तरंग कहा जाता है।
ये प्रघाती तरंगें बहुत ऊर्जा लिए होती हैं और आसपास की खिड़कियों के शीशे तोड़ सकती हैं, या किसी इमारत को नुकसान भी पहुंचा सकती हैं।
मैक संख्या, ध्वनि स्रोत की गति और हवा में ध्वनि की गति का अनुपात है।
तो, मैक-संख्या = (v/vs) , जहां v = ध्वनि स्रोत का वेग, और vs = ध्वनि का वेग
यदि मैक-संख्या (v/vs) > 1, तो ध्वनि स्रोत का वेग पराध्वनिक (सुपरसोनिक) कहलाता है।
यदि मैक-नंबर (v/vs) > 5, तो ध्वनि स्रोत का वेग हाइपरसोनिक कहलाता है।
ध्वनि तरंगों के प्रकार (Types of Sound Waves)
ध्वनि तरंगें उनकी आवृत्ति के आधार पर विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं।
श्रव्य तरंगें (Audible waves): ये ध्वनि तरंगें 20 हर्ट्ज से 20000 हर्ट्ज की आवृत्ति सीमा में होती हैं। मानव कान इन ध्वनि तरंगों के प्रति संवेदनशील होता है।
अपश्रव्य तरंगें (इन्फ्रासोनिक तरंगें, Infrasonic waves): इन ध्वनि तरंगों की आवृत्ति 20 हर्ट्ज से कम होती है। ये तरंगें बड़े आकार के स्रोतों, जैसे भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, समुद्री लहरें और हाथी और व्हेल जैसे बड़े जानवरों द्वारा उत्पन्न होती हैं।
पराश्रव्य तरंगें (अल्ट्रासोनिक तरंगें, Ultrasonic waves): इन ध्वनि तरंगों की आवृत्ति 20000 हर्ट्ज से अधिक होती है। इनका निर्माण पहली बार गैल्टन (Galton) द्वारा किया गया था। मानव कान इन उच्च-आवृत्ति तरंगों का पता नहीं लगा सकते। हालाँकि कुछ जानवर इन तरंगों का पता लगा सकते हैं, जैसे कुत्ते, चमगादड़, मच्छर।
अल्ट्रासोनिक तरंगों के अनुप्रयोग
- अल्ट्रासोनिक तरंगों का उपयोग सोनार (SONAR, Sound Navigation And Ranging, साउंड नेविगेशन एंड रेंजिंग) में किया जाता है। SONAR का उपयोग समुद्र की गहराई मापने, दुश्मन की पनडुब्बियों, और जहाजों के मलबे का पता लगाने के लिए किया जाता है।
- सिग्नल भेजने के लिए अल्ट्रासोनिक तरंगों का उपयोग किया जाता है।
- अल्ट्रासोनिक तरंगों के कई चिकित्सीय उपयोग हैं, उदा. निदान (diagnostics), सर्जरी और इलाज: इनका उपयोग अल्ट्रासोनोग्राफी (ultrasonography) में किया जाता है। इनका उपयोग ट्यूमर और दांतों की कैविटी आदि का पता लगाने के लिए किया जाता है। अल्ट्रासोनिक्स का उपयोग रक्तहीन सर्जिकल ऑपरेशन में किया जाता है। अल्ट्रासोनिक विकिरण का उपयोग विभिन्न तंत्रिका संबंधी रोगों और गठिया के इलाज के लिए किया जाता है।
- अल्ट्रासोनिक तरंगों का उपयोग सफाई उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है, जैसे कपड़े, हवाई जहाज, घड़ियों के मशीनरी भाग की सफाई और कारखानों की चिमनी से लैंप-शूट (lamp-shoot) हटाने के लिए।
- सर्दी के मौसम में धूल के कणों को स्कन्दित करने (जमाने, coagulate) के लिए भी अल्ट्रासोनिक्स का उपयोग किया जाता है। इससे हवाई अड्डों पर धुंध और कोहरे को कम करने में मदद मिलती है, जिससे विमानों की लैंडिंग में सुविधा होती है।
- अल्ट्रासोनिक्स में स्टरलाइज़िंग गुण (sterilizing properties) भी होते हैं। यदि किसी तरल पदार्थ को अल्ट्रासोनिक्स के संपर्क में लाया जाए तो उसमें मौजूद बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, कई देशों में दूषित दूध को अल्ट्रासोनिक्स से गुजारकर शुद्ध किया जाता है।
अल्ट्रासोनिक तरंगों का उपयोग न केवल मनुष्यों द्वारा, बल्कि कुछ जानवरों द्वारा भी किया जाता है। चमगादड़ जैसे कुछ जानवर न केवल इन तरंगों का पता लगा सकते हैं, बल्कि अल्ट्रासोनिक ध्वनियाँ उत्पन्न भी कर सकते हैं और उनकी गूँज के आधार पर संचालन/नेविगेट भी कर सकते हैं।
ध्वनि तरंग (संगीत ध्वनि) के गुण
आइए, अब ध्वनि तरंगों की विशेषताओं के बारे में समझें जो संगीत के अध्ययन में बहुत उपयोगी हैं।
प्रबलता और तीव्रता (Loudness and Intensity)
प्रबलता, ध्वनि की तीव्रता पर निर्भर करती है। आम शब्दों में, अधिक तीव्र ध्वनि तेज़ होती है और कम तीव्र ध्वनि कमज़ोर होती है।
तकनीकी शब्दों में, अंतरिक्ष में किसी भी बिंदु पर ध्वनि की तीव्रता उस बिंदु के आसपास प्रति इकाई समय में प्रति इकाई क्षेत्र से सामान्य रूप से गुजरने वाली ऊर्जा की मात्रा है।
तीव्रता की SI इकाई, जूल/सेकंड-मीटर2 या वाट/मीटर2 है। प्रबलता की इकाई बेल (bel) है।
ध्वनि की तीव्रता को ध्वनि स्तर (Sound level, β) की अवधारणा का उपयोग करके मापा जाता है।
β= 10 log10 (I/I0) dB
जहां, I ध्वनि तरंगें पैदा करने वाले स्रोत की तीव्रता है, और I0 संदर्भ तीव्रता (reference intensity) है जो 10-12 W/m2 के बराबर होती है|
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation, WHO) के अनुसार:
- 45 dB तक की ध्वनि मानव कानों के लिए सुरक्षित है।
- 75 dB से अधिक ध्वनि खतरनाक मानी जाती है, और
- 150 dB से अधिक ध्वनि मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है (उन्हें पागल बना सकती है)।
अब आइए उन विभिन्न कारकों को देखें जिन पर ध्वनि की तीव्रता (intensity) निर्भर करती है।
संगीतमय ध्वनि की तीव्रता सीधे आनुपातिक है:
- स्रोत के कंपन के आयाम (amplitude) का वर्ग,
- तरंग की आवृत्ति का वर्ग,
- लहर की गति,
- माध्यम का घनत्व,
- माध्यम की प्रत्यास्थता (elasticity), और
- स्रोत का आकार: बड़े स्रोत की तीव्रता अधिक होती है और इसके विपरीत भी सही है।
संगीतमय ध्वनि की तीव्रता व्युत्क्रमानुपाती होती है:
- स्रोत की दूरी के वर्ग के
बीट्स एक ऐसी घटना है जिसमें लगभग समान आवृत्ति की दो ध्वनि तरंगें व्यतिकरण (interfere) करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप परिणामी तरंग की तीव्रता (intensity) समय के साथ बढ़ती और घटती रहती है।
बीट आवृत्ति (Beat frequency) दो तरंगों की आवृत्तियों के अंतर के बराबर होती है।
पिच (तारत्व, Pitch)
पिच की अवधारणा आवाज की तीक्ष्णता (shrillness) और बास (base, आधार) से संबंधित है। यह एक तीखी आवाज़ (shrill note) को गहरी आवाज़ (grave note) से अलग करता है।
ध्वनि की पिच, स्रोत की आवृत्ति पर निर्भर करती है। किसी स्रोत के कंपन की आवृत्ति जितनी अधिक होगी, उत्सर्जित स्वर की पिच उतनी ही अधिक होगी और इसके विपरीत भी सही है।
- किसी स्रोत के कंपन की आवृत्ति जितनी अधिक होगी, पिच का मान उतना ही अधिक होगा, और ध्वनि उतनी ही अधिक तीखी होगी। यह बच्चों और महिलाओं की आवाज़ में होता है|
- किसी स्रोत के कंपन की आवृत्ति जितनी कम होगी, पिच का मान उतना ही कम होगा, और ध्वनि उतनी ही गहरी (या भारी) होगी। यह पुरुषों की आवाज़ में होता है|
गुणवत्ता या टिम्बर (Quality or Timber)
ध्वनि तरंगों (या संगीत स्वर) की गुणवत्ता, उनके रूप पर निर्भर करती है (उनकी आवृत्ति पर नहीं)। ध्वनि तरंगों का रूप (form of sound waves), विभिन्न हार्मोनिक्स की उपस्थिति से नया आकार लेता है (उपस्थित हार्मोनिक्स मौलिक स्वर की आवृत्ति को प्रभावित नहीं करते हैं)।
इसलिए, समान तीव्रता (intensity) और तारत्व (pitch) वाले दो स्रोतों से उत्पन्न ध्वनियाँ भी भिन्न प्रतीत हो सकती हैं। किसी व्यक्ति या संगीत वाद्ययंत्र की आवाज में मौजूद विभिन्न हार्मोनिक्स तरंग रूप को नया आकार देते हैं, जिसके कारण अलग-अलग नोट्स की गुणवत्ता (quality) अलग-अलग हो जाती है। हम विभिन्न ध्वनियों के बीच उनकी गुणवत्ता में अंतर के कारण अंतर कर सकते हैं। इस प्रकार हम जाने-माने व्यक्तियों और विभिन्न संगीत वाद्ययंत्रों की आवाज़ों की पहचान करते हैं।
अन्य विशेषताएँ
ध्वनि तरंगों में कई अन्य प्रकार की विशेषताएँ भी होती हैं, जैसे परावर्तन, अपवर्तन और विवर्तन (बिल्कुल प्रकाश तरंगों की तरह)।
इन्हें नीचे सूचीबद्ध किया गया है:
ध्वनि का परावर्तन (Reflection of sound): जब ध्वनि किसी कठोर सतह से टकराती है, तो वह टकराके वापस लौटती है। मेगाफोन, साउंड बोर्ड और ईयर ट्रम्पेट की कार्यप्रणाली ध्वनि के परावर्तन की घटना पर आधारित है।
ध्वनि का विवर्तन (Diffraction of sound): प्रकाश तरंगों की तरह, ध्वनि तरंगें भी विवर्तित होती हैं। हालाँकि प्रकाश की तुलना में ध्वनि तरंगें अधिक व्यापक रूप से विवर्तित होती हैं। इसीलिए हम नज़रों से दूर बैठे व्यक्ति की भी आवाज़ सुन सकते हैं।
ध्वनि तरंगों के एकाधिक परावर्तन के कारण ध्वनि बार-बार दोहराई जा सकती है। इस घटना को प्रतिध्वनि (Echo, इको) कहा जाता है।
प्रतिध्वनि के निर्माण के लिए आवश्यक शर्त यह है कि मानव कान द्वारा परावर्तित तरंग की, प्रत्यक्ष तरंग से स्पष्ट रूप से अलग पहचान की जानी चाहिए| मानव कान एक दूसरे से 0.1 सेकंड के कम अंतर से आने वाली दो ध्वनियों के बीच अंतर नहीं कर सकता है। यह तभी संभव है जब ध्वनि तरंग को परावर्तित करने वाली सतह, मूल ध्वनि स्रोत से कम से कम 16.6 मीटर दूर हो।