इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन और फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव
इस लेख में, हम धातु की सतहों से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन (Electron Emission) और एक संबंधित घटना जिसे फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव (Photoelectric Effect) कहा जाता है, के बारे में अध्ययन करने जा रहे हैं।
- इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन (Electron Emission)
- प्रकाश विद्युत प्रभाव
- फोटोइलेक्ट्रिक सेल
इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन (Electron Emission)
हम जानते हैं कि धातुएँ विद्युत की सुचालक होती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि बाहरी कक्षा में धातुओं के मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं। धातुएँ विद्युत का संचालन कर सकती हैं क्योंकि ये ऋणात्मक आवेशित इलेक्ट्रॉन स्वयं को परमाणुओं से मुक्त कर सकते हैं और धातु में स्वतंत्र रूप से प्रवाहित हो सकते हैं।
हालांकि, इन इलेक्ट्रॉनों के लिए धातु से बाहर आना आसान नहीं है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जैसे ही धातु की सतह पर स्तिथ परमाणु अपना इलेक्ट्रॉन छोड़ता है, सतह एक सकारात्मक चार्ज प्राप्त कर लेती है और इलेक्ट्रॉन को वापस धातु की ओर खींच लेती है।
हालाँकि, यदि इलेक्ट्रॉन में पर्याप्त ऊर्जा है, तो वह बच कर निकल सकता है। यह ठीक उसी तरह है जैसे भाप उबलते पानी की सतह को छोड़ती है।
कार्य फलन
किसी धातु का कार्य फलन (Work Function) वह न्यूनतम ऊर्जा है जो एक इलेक्ट्रॉन के उस धातु की सतह से बाहर निकलने के लिए आवश्यक होती है। इसे मापने के लिए हम eV (इलेक्ट्रॉन वोल्ट) का उपयोग करते हैं।
अधिक सटीकता से कहें तो, धातु का कार्य फलन उस धातु की सतह से एक फोटोइलेक्ट्रॉन (photoelectron) को बाहर निकालने के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा है।
कार्य फलन एक धातु से दूसरी धातु में भिन्न होता है, क्योंकि यह धातु के गुणों पर निर्भर करता है। यह धातु की सतह की प्रकृति पर भी निर्भर करता है।
eV (इलेक्ट्रॉन वोल्ट) ऊर्जा की एक इकाई है जिसका उपयोग अक्सर परमाणु भौतिकी में किया जाता है।
1 eV = 1.602 × 10-19 J
1 eV मूल रूप से एक इलेक्ट्रॉन द्वारा प्राप्त ऊर्जा है यदि इसे 1 वोल्ट के विभवांतर (potential difference) से त्वरित किया जाता है।
- प्लेटिनम (platinum) का कार्य फलन उच्चतम होता है।
- सीज़ियम (caesium) का कार्य फलन सबसे कम होता है।
लेकिन एक इलेक्ट्रॉन इस न्यूनतम आवश्यक ऊर्जा को कैसे प्राप्त कर सकता है, और धातु की सतह से बच कर निकल सकता है?
ऊर्जा स्रोत जो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन को प्रेरित कर सकते हैं
धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉन विभिन्न भौतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से धातु की सतह से उत्सर्जन के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा (यानी कार्य फलन) प्राप्त कर सकते हैं। इनमें से कुछ को नीचे सूचीबद्ध किया गया है:
- ऊष्मीय उत्सर्जन (Thermionic emission): जिस तरह पानी को गर्म करने पर पानी के अणु पानी की सतह से बच निकल सकते हैं, वैसे ही हम धातुओं के मामले में भी ऐसा कर सकते हैं। यदि किसी धातु को गर्म किया जाता है और उसमें मुक्त इलेक्ट्रॉनों को पर्याप्त तापीय ऊर्जा प्रदान की जाती है, तो वे धातु की सतह से बाहर निकल सकते हैं।
- क्षेत्र उत्सर्जन (Field Emission): धातु की सतह से इलेक्ट्रॉनों को निकाला जा सकता है यदि धातु पर एक बहुत मजबूत विद्युत क्षेत्र (108 V/m के क्रम का) लगाया जाता है। स्पार्क प्लग में यही होता है।
- फोटो-इलेक्ट्रिक उत्सर्जन (Photo-electric emission): यदि किसी धातु की सतह पर एक निश्चित उपयुक्त आवृत्ति का प्रकाश प्रकाशित होता है, तो इसकी सतह से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन हो सकता है। ऐसे इलेक्ट्रॉनों को फोटोइलेक्ट्रॉन (photoelectrons) कहा जाता है क्योंकि वे प्रकाश/फोटो द्वारा उत्पन्न होते हैं।
आइए, अब प्रकाश-विद्युत प्रभाव के बारे में और अधिक विस्तार से अध्ययन करें।
प्रकाश विद्युत प्रभाव (Photoelectric Effect)
जैसा कि हमने पहले अध्ययन किया, फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव (Photoelectric Effect) धातु की सतह से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की घटना है जब उस पर उपयुक्त आवृत्ति का प्रकाश डाला जाता है। ऐसे उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को फोटोइलेक्ट्रॉन कहा जाता है।
इस घटना को समझने में कई वैज्ञानिकों ने हमारी मदद की।
- इस घटना की खोज हेनरिक हर्ट्ज़ (Heinrich Hertz) ने 1887 में की थी।
- इसके बाद, 1886-1902 के दौरान विल्हेम हॉलवाच और फिलिप लेनार्ड (Wilhelm Hallwachs and Philipp Lenard) ने इसका और अधिक विस्तार से अध्ययन किया।
- यह आइंस्टीन (Einstein) ही थे जिन्होंने मैक्सवेल-प्लैंक क्वांटम सिद्धांत के आधार पर इस घटना के पीछे के तंत्र की व्याख्या की थी।
- 1916 में मिलिकन (Millikan) ने इसे प्रयोगात्मक रूप से सिद्ध किया।
फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव के पीछे का तंत्र
फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव के पीछे का तंत्र आइंस्टीन द्वारा सिद्धांतित किया गया था, और फिर बाद में मिलिकन द्वारा प्रयोगात्मक रूप से सिद्ध किया गया।
- धातु की सतह पर विकिरण/प्रकाश आपतित होता है।
- धातु में इलेक्ट्रॉन, विकिरण की ऊर्जा की मात्रा को अवशोषित करते हैं।
- यदि किसी इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित विकिरण की ऊर्जा की मात्रा उस धातु के कार्य फलन से अधिक हो जाती है (अर्थात इलेक्ट्रॉन को धातु की सतह से बचने के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा), तो यह अधिकतम गतिज ऊर्जा के साथ धातु की सतह से निकल सकता है। यह देहली आवृत्ति (threshold frequency) की अवधारणा से संबंधित है।
देहली आवृत्ति और देहली तरंगदैर्ध्य (Threshold frequency and Threshold wavelength)
हम पहले से ही जानते हैं कि किसी विशेष धातु या प्रकाश संवेदनशील सामग्री के लिए, आपतित विकिरण की ऊर्जा की मात्रा उस धातु के कार्य फलन से अधिक होनी चाहिए।
हम यह भी जानते हैं कि, आपतित विकिरण (या प्रकाश) की ऊर्जा की मात्रा उस विकिरण/प्रकाश की तरंग दैर्ध्य/आवृत्ति पर निर्भर करती है। प्रकाश की आवृत्ति जितनी अधिक होगी, फोटॉन उतने ही अधिक ऊर्जावान होंगे।
धातु के लिए देहली आवृत्ति, आपतित विकिरण की न्यूनतम कट-ऑफ आवृत्ति है, जिसके नीचे फोटोइलेक्ट्रॉनों का कोई उत्सर्जन नहीं होता है। तो मूल रूप से, देहली आवृत्ति (threshold frequency) कार्य फलन की आवृत्ति (frequency of the work function) हीं है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्रकाश कितना तीव्र है - क्योंकि फोटॉन की ऊर्जा प्रकाश की आवृत्ति पर निर्भर करती है, न कि इसकी तीव्रता (intensity) पर।
देहली आवृत्ति के ऊपर, उत्सर्जित फोटोइलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा आपतित विकिरण की आवृत्ति के साथ रैखिक रूप से बढ़ती है। यह भी इसकी तीव्रता से स्वतंत्र होती है।
देहली तरंगदैर्घ्य, आपतित विकिरण/प्रकाश की अधिकतम कट-ऑफ तरंगदैर्घ्य है जो धातु की सतह से फोटोइलेक्ट्रॉन को बाहर निकाल सकती है। इसे λmax द्वारा निरूपित किया जाता है।
फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव के लक्षण
गुण 1: आपतित विकिरण की तीव्रता (Intensity of incident radiation)
प्रति सेकंड उत्सर्जित फोटोइलेक्ट्रॉनों की संख्या α आपतित विकिरण की तीव्रता
विकिरण की तीव्रता प्रति सेकंड एक क्षेत्र से गुजरने वाले (या प्रति सेकंड धातु की सतह पर आपतित) फोटॉनों की संख्या है।
आपतित विकिरण की तीव्रता जितनी अधिक होगी, प्रति सेकंड उत्सर्जित होने वाले फोटोइलेक्ट्रॉनों की संख्या उतनी ही अधिक होगी।
हालांकि, ध्यान रखें कि उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा, आपतित विकिरण की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है। अपितु यह फोटॉन की ऊर्जा पर निर्भर करती है।
गुण 2: आपतित विकिरण की ऊर्जा (Energy of incident radiation)
उत्सर्जित फोटोइलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा, आपतित फोटोन की ऊर्जा और धातु (अर्थात उत्सर्जक प्लेट सामग्री) पर निर्भर करती है।
दूसरे शब्दों में, जैसे-जैसे आपतित प्रकाश स्रोत (अर्थात प्रकाश की तरंग दैर्ध्य/आवृत्ति) बदलेगा, उत्सर्जित फोटोइलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा बदल जाएगी।
यह आपतित विकिरण की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है।
गुण 3: तात्कालिक प्रक्रिया (Instantaneous Process)
फोटोइलेक्ट्रिक उत्सर्जन तुरंत होता है, यानी धातु की सतह पर विकिरण के पड़ने और फोटोइलेक्ट्रिक इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जित होने के बीच कोई स्पष्ट समय अंतराल (∼10-9 s या उससे कम) नहीं होता है।
यह तब भी सही साबित होता है जब आपतित विकिरण को अत्यधिक मंद (dim) बना दिया जाता है।
गुण 4: धातु और प्रकाश की प्रकृति
फोटोइलेक्ट्रिक उत्सर्जन एक धातु से दूसरी धातु में और एक प्रकार के प्रकाश से दूसरे में भिन्न होता है।
- एक सामग्री एक निश्चित प्रकाश के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करेगी यह एक प्रकाश संवेदनशील सामग्री से दूसरे में भिन्न होगी। उदाहरण के लिए, सेलेनियम (selenium), जस्ता (zinc) या तांबे (copper) की तुलना में प्रकाश के प्रति अधिक संवेदनशील है।
- यदि एक ही धातु पर विभिन्न प्रकार के प्रकाश (अर्थात विभिन्न तरंगदैर्घ्य/आवृत्तियों के प्रकाश) आपतित होते हैं, तो यह अलग-अलग प्रतिक्रिया देगा। उदाहरण के लिए, तांबे पर पराबैंगनी (ultraviolet) प्रकाश पड़ने पर हमें प्रकाश-विद्युत प्रभाव देखने को मिलता है। लेकिन तांबे पर हरा या लाल प्रकाश पड़ने पर हमें प्रकाश-विद्युत प्रभाव देखने को नहीं मिलता है।
फोटोइलेक्ट्रिक सेल
फोटोइलेक्ट्रिक सेल (Photoelectric cell) एक ऐसा उपकरण है जो प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है। यह फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव की घटना पर आधारित है।
स्टॉपिंग पोटेंशिअल या कट-ऑफ पोटेंशिअल (Stopping potential or Cut-off potential): यह एक फोटोइलेक्ट्रिक सेल के एनोड/anode को दी गई नकारात्मक पोटेंशियल/विभव/potential है जिसके लिए फोटोइलेक्ट्रिक करंट/धारा शून्य हो जाता है। इसे V0 से निरूपित किया जाता है।
फोटोइलेक्ट्रिक सेल के अनुप्रयोग
फोटोइलेक्ट्रिक सेल का उपयोग विभिन्न उपकरणों में किया जाता है। उनमें से कुछ को नीचे सूचीबद्ध किया गया है।
- स्ट्रीट लाइट में वाष्प लैम्प फोटोइलेक्ट्रिक सेल (Vapour Iamps photoelectric cells) का उपयोग किया जाता है। वे आपतित सूर्य के प्रकाश को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं और उसका भंडारण करते हैं। ऐसी लाइट रात में अपने आप चालू हो जाती है और दिन में बंद हो जाती है।
- अंतरिक्ष उपग्रहों में भी फोटोइलेक्ट्रिक सेल का उपयोग किया जाता है। जब सूर्य का प्रकाश उन पर पड़ता है तो वे आवेशित हो जाते हैं - अर्थात वे प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं। रात में संग्रहित बिजली का उपयोग किया जाता है।
- फोटोइलेक्ट्रिक सेल का उपयोग स्वचालित दरवाजों में किया जाता है, जो अपने आप खुल जाते हैं जब कोई व्यक्ति उनके पास आता है। हम अक्सर मल्टीप्लेक्स, अत्याधुनिक कार्यालयों, आदि में ऐसे दरवाजों को देखते हैं।
- किसी भी अवांछित व्यक्ति की पहचान के लिए बैंकिंग संस्थानों के स्ट्रांग रूम में फोटोइलेक्ट्रिक सेल का उपयोग किया जाता है।
- सिनेमा और टीवी में ध्वनि के पुनरुत्पादन के लिए फोटोइलेक्ट्रिक सेल का उपयोग किया जाता है।