ठोस पदार्थों की प्रत्यास्थता और सुघट्यता
इस लेख में, हम ठोस के कुछ यांत्रिक गुणों के बारे में जानेंगे - प्रत्यास्थता (Elasticity) और सुघट्यता (Plasticity)।
लेकिन ऐसा करने से पहले, आइए हम सामान्य रूप से पदार्थ और विशेष रूप से ठोस के बारे में जानें।
- पदार्थ क्या होता है?
- प्रत्यास्थता और सुघट्यता
पदार्थ क्या होता है?
हमारे ब्रह्मांड में कोई भी चीज जो जगह लेती है और जिसमें द्रव्यमान होता है उसे पदार्थ (matter) कहा जाता है। चूंकि पदार्थ में द्रव्यमान (mass) होता है, यह गुरुत्वाकर्षण और जड़त्व संबंधी गुणों का प्रदर्शन करेगा।
ठोस क्या होता है?
ठोस एक प्रकार का पदार्थ है जिसमें अणु या परमाणु एक साथ कसकर पैक होते हैं। अणुओं की यह तंग पैकेजिंग किसी भी ठोस को एक निश्चित आकार (और इसलिए एक निश्चित आयतन) प्रदान करती है।
पदार्थ को दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है:
भौतिक वर्गीकरण: पदार्थ ठोस, तरल, गैस या प्लाज्मा हो सकता है। (इस लेख में, हम केवल ठोस के भौतिक गुणों पर ध्यान केंद्रित करने जा रहे हैं।)
रासायनिक वर्गीकरण: पदार्थ शुद्ध पदार्थ (तत्व या यौगिक) या मिश्रण (समांगी/Homogeneous या विषमांगी/Heterogeneous) हो सकता है|
अगर हम और भी गेहरायीं में जाएं, तो तत्व (element) - धात्विक (metallic) या अधात्विक (non-metallic) हो सकते हैं। इसी तरह, यौगिक (Compounds) - कार्बनिक (Organic) या अकार्बनिक (Inorganic) हो सकते हैं।
प्रत्यास्थता और सुघट्यता
अतः हम जानते हैं कि ठोसों का एक निश्चित आकार होता है।
- लेकिन क्या होगा अगर हम उस पर बल लगाते हैं?
- किसी विशेष ठोस के आकार को बदलने के लिए हमें कितना बल लगाने की आवश्यकता है?
- अगर हम बल लगाना बंद कर दें तो क्या होगा?
- बाह्य बल को हटाने पर क्या ठोस अपने मूल आकार को पुनः प्राप्त कर लेगा या नया विकृत आकार बनाए रखेगा?
आइए देखते हैं।
ठोसों की प्रत्यास्थता क्या होती है?
हम जानते हैं कि जब हम किसी ठोस पर पर्याप्त बल लगाते हैं, तो उसका आकार बदल सकता है (या हम कह सकते हैं कि वह विकृत हो जाता है)। ऐसे विरूपण को प्रत्यास्थता विरूपण (elastic deformation) कहा जाता है।
रॉबर्ट हुक/Robert Hooke (1635-1703 A.D) ने स्प्रिंग्स पर कुछ प्रयोग किए। उन्होंने पाया कि स्प्रिंग्स की लंबाई में परिवर्तन, लागू बाहरी बल के समानुपाती होता है। इसे प्रत्यास्थता का नियम या हुक का नियम कहते हैं।
प्रत्यास्थता एक यांत्रिक गुण है, जिसके कारण बाहरी बल हटा दिए जाने के बाद ठोस अपने मूल आकार को पुनः प्राप्त कर लेता है।
ठोस जितना अधिक अपने मूल आकार को पुनः प्राप्त करने की इस विशेषता को प्रदर्शित करता है, उतना ही अधिक लोचदार/प्रत्यास्थ (elastic) कहा जाता है। उदाहरण के लिए, जब हम किसी स्प्रिंग को खींचते हैं, तो वह खिंचता है (अर्थात उसकी लंबाई बढ़ जाती है)। लेकिन जैसे ही हम इसे खींचना बंद करते हैं, यह कुछ हद तक अपने मूल आकार में वापस आ जाता है। ऐसे ठोस पदार्थों को अक्सर लोचदार/प्रत्यास्थ कहा जाता है।
प्रत्यास्थता के पीछे का कारण
हम ठोस की सूक्ष्म प्रकृति के संदर्भ में ठोस में प्रत्यास्थता की घटना की व्याख्या कर सकते हैं।
एक ठोस में परमाणु और अणु एक दूसरे के करीब होते हैं, और अंतर-परमाणु या अंतर-आणविक बलों द्वारा एक साथ बंधे होते हैं, और एक स्थिर संतुलन स्थिति में रहते हैं।
बल का प्रयोग इस संतुलन को बिगाड़ता है, और अंतर-परमाणु या अंतर-आणविक दूरियों में परिवर्तन करता है।
लेकिन जैसे ही यह बाहरी बल हटा दिया जाता है, अंतर-परमाणु या अंतर-आणविक बल उन परमाणुओं/अणुओं को उनकी मूल स्थिति में वापस खींच लेते हैं। इस घटना के कारण लोचदार ठोस अपने मूल आकार और प्रकार को पुनः प्राप्त कर लेते हैं।
हालाँकि, यदि लागू बल पर्याप्त रूप से प्रबल है, तो यह इन अंतर-परमाणु या अंतर-आणविक बंधों को तोड़ सकता है। अधिकतम बाहरी विरूपक बल (external deforming force) जिस तक कोई पिंड अपनी लोच के गुण को बरकरार रखता है, उस ठोस की प्रत्यास्थता सीमा (limit of elasticity) कहलाती है।
ठोसों की सुघट्यता क्या होती है?
सुघट्यता एक अवधारणा है जो प्रत्यास्थता की अवधारणा के विपरीत है।
सुघट्यता ठोस का एक यांत्रिक गुण है, जिसके कारण बाहरी बल हटा दिए जाने के बाद भी वह अपने मूल आकार को पुनः प्राप्त नहीं करता है।
ठोस जितना अधिक अपने मूल आकार को पुनः प्राप्त नहीं करने की इस विशेषता को प्रदर्शित करता है, उतना ही अधिक सुघट्य/प्लास्टिक कहा जाता है। उदाहरण के लिए, एक बार जब हम मिट्टी के गोले के आकार को बदल देते हैं, तो वह अपना मूल आकार वापस नहीं ले पाता है। ऐसे प्रदार्थ स्थायी रूप से विकृत हो जाते हैं। ऐसे ठोस पदार्थों को अक्सर सुघट्य/प्लास्टिक कहा जाता है।
- लगभग पूर्ण प्रत्यास्थ पदार्थ - क्वार्ट्ज और फॉस्फर कांस्य (Quartz and Phosphor bronze)
- लगभग संपूर्ण सुघट्य पदार्थ - मिट्टी
- स्टील, रबर की तुलना में अधिक प्रत्यास्थ/लोचदार होती है।
ठोसों के भौतिक गुणों से संबंधित एक अन्य अवधारणा प्रतिबल/तनाव (Stress) और विकृति/खिंचाव (Strain) की है।